Moti Mahal - Part (1) in Hindi Horror Stories by Saroj Verma books and stories PDF | मोतीमहल--भाग(१)

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मोतीमहल--भाग(१)

आधी रात का समय ....
सुनसान स्टेशन,खाली प्लेटफार्म, अमावस्या की रात,चारों ओर केवल अँधेरा ही अँधेरा, आ रही तो बस केवल आवारा कुत्तों के भौंकने की आवाज,प्लेटफार्म पर कहीं कहीं लैम्पपोस्ट लगे जिनसे बिलकुल फीकी और पीली रोशनी आ रही है,रोशनी इतनी हल्की है कि किसी का भी चेहरा देख पाना मुश्किल है।।
तभी स्टेशन के प्लेटफार्म पर रेलगाड़ी रूकी,रेलगाड़ी से एक आदमीं हैट लगाएं ,ओवरकोट पहनें बाहर उतरा,उसके पास उसका सूटकेस और एक बिस्तरबंद था,उसनें यहाँ वहाँ नज़रें दौड़ाईं लेकिन उसे कोई भी कुली ना दिखा जो उसका समान उठा सकें,स्टेशन एकदम सुनसान था,एक भी इंसान वहाँ नहीं दिख रहा था,वहाँ पड़ी बेंच पर बैठकर उसने सिगार सुलगाया और बैठ गया,
कुछ देर में के बाद वहाँ एक बूढ़ा आदमी आया और उसने उस आदमी से पूछा___
बाबूजी! क्या आप किसी का इंतज़ार कर रहें हैं?
नहीं! मैं तो किसी कुली को देख रहा हूँ जो मेरा सामान उठाकर बाहर ले चलें,उस आदमी ने जवाब दिया।।
तो बाबूजी! मैं आपका समान उठाकर बाहर ले चलता हूँ,जो मन में आए तो दे देना,उस बूढ़े ने कहा।।मतलब़ तुम कुली नहीं हो! उस आदमी ने बूढ़े से पूछा ।।
जी नहीं बाबूजी! सुबह से भूखा हूँ,स्टेशन पर भीख माँगता हूँ,जो मिल जाता है उसी से पेट भर लेता हूँ,बूढ़े ने जवाब दिया।।
अच्छा! ठीक है उठा लो सामान,उस आदमी ने कहा।।
ठीक है!बाबू जी! कहाँ जाना है आपको? क्योंकि इतनी रात को तो आपको एक ही ताँगा खड़ा मिलेगा,स्टेशन के बाहर और वो ताँगा है रामखिलावन का,उसे ना जाने कौन सा दुख है कि रात को उसको नींद नहीं आती,सालों से उसका यही हाल है,बहुत बूढ़ा हो चुका है लेकिन ताँगा चलाने को नहीं मानता,कहता है कि किसी का इंतज़ार कर रहा हूँ,हो सकता है कि वो कभी इसी गाड़ी से लौट आएं,बूढ़े ने कहा।।
कौन है वो? जिसका वो इंतज़ार कर रहा है,उस आदमी ने पूछा।।
क्या पता? कौन जाने? उसने कभी बताया नहीं,बूढ़े ने कहा ।।
और दोनों स्टेशन के प्लेटफार्म से निकलकर बाहर की ओर आकर रामखिलावन के ताँगें की ओर बढ़ गए।।
बूढ़े ने देखा कि रामखिलावन अपने ताँगे में लेटा हुआ है,उसने रामखिलावन को आवाज दी___
अरे,ओ रामखिलावन! देख तेरे ताँगे के लिए एक सवारी लाया हूँ।।
कौन है भाई? रामखिलावन ने पूछा।।मैं हूँ सखाराम भिखारी, बूढ़े ने जवाब दिया।।
अच्छा! तू है सखाराम! तुझे आधी रात को कौन सी सवारी मिल गई,रामखिलावन ने पूछा।।
कोई बाबू साहब हैं,सखाराम बोला।।
अच्छा! मैं उठता हूँ,उन्हें बैठाओ ताँगेँ में,रामखिलावन इतना कहकर ताँगें से बाहर आया,ताँगें में टँगीं लालटेन की रोशनी बढ़ाई और उसने जैसे ही सवारी का चेहरा देखा तो पसीने पसीने हो गया और उसके मुँह से निकल गया___
रणजीत....रणजीत सिंह...तुम आ गए।।
उस सवारी ने हँसते हुए कहा___
कौन रणजीतसिंह? मैं तो सत्यसुन्दर हूँ भाई,लगता है तुम्हें कोई गलत़फ़हमी हो रही है।।
हाँ,बाबूजी! लगता है कि मुझसे ही कोई गलती हुई आपको पहचानने में,रामखिलावन बोला।।
सखाराम ने ताँगें में सत्यसुन्दर का सामान रख दिया और बोला___
ठीक है बाबूजी! नमस्ते! वैसे आपकों जाना कहाँ हैं?मैं वनविभाग का नया आँफिसर हूँ,वनविभाग के डाकबँगलें में जाकर रूकूँगा,सत्यसुन्दर बोला।।
वहाँ बाबूजी! सुना है कि वो इलाका तो बहुत ही सुनसान है और वहाँ तो एक चुड़ैल भी रहती है जो रातों में घूम घूमकर गाना गाती है,सखाराम बोला।।
अरे,ये सब दकियानूसी बातें हैं भूत चुड़ैल कुछ भी नहीं होता,सत्यसुन्दर बोला।।
ना बाबूजी! होते हैं,मेरी माँ बताती थी,सखाराम बोला।।
अच्छा,ये लो तुम्हारे पैसे अगर कम लगे तो बताओ,सत्यसुन्दर ने सखाराम को पैसे देते हुए कहा।।
ना बाबूजी! ये तो बहुत ज्यादा हैं,इनसे तो मेरे दो तीन दिनों के खाने का इंतज़ाम हो जाएगा,सखाराम बोला।।
अच्छा,ठीक है अब मैं चलूँ,सत्यसुन्दर बोला।।
हाँ,बाबू जी! आप तो बहुत भले जान पड़ते हैं,भगवान आपका भला करें,सखाराम बोला।।
तभी सत्यसुन्दर ने रामखिलावन से कहा___
चलो बाबा! तुम्हें वनविभाग के डाकबँगले का पता तो मालूम है ना।।
हाँ,बाबूजी! ज्यादातर समय वहीं गुजरा है मेरा,रामखिलावन बोला।।
अच्छा! तो मुझे ले चलो वहाँ और हाँ इस समय कुछ खाने पीने का इंतज़ाम हो जाएगा क्या?सत्यसुन्दर ने पूछा।।
ना बाबूजी! इस समय तो ना कोई ढ़ाबा खुला होगा और ना ही कोई दुकान,छोटी सी तो जगह है,लोंग सात बजे ही सो जाते हैं,रामखिलावन बोला।।
अच्छा,ठीक है कोई बात नहीं,सत्यसुन्दर बोला।।
बाबू जी! डाकबँगले में नौकर रहता है,वो सब इंतज़ाम कर देगा,आप चिंता ना करें,रामखिलावन बोला।।तब तो ठीक है,सत्यसुन्दर बोला।।
आधी रात,सुनसान पेड़ो से भरा रास्ता,कोई भी इंसान दिखाई नहीं दे रहा था,अगर कोई आवाज़ सुनाई दे रही थी तो वो थी घोड़ी के टापों की।।
तभी सत्यसुन्दर को किसी लड़की के गाने की आवाज़ सुनाई दी और उसने रामखिलावन से पूछा कि कौन गा रहा है।।
ना जाने कौन है बाबू जी! कोई चुड़ैल हुई तो,वैसे भी लोगों ने कहा है कि यहाँ किसी औरत की आत्मा भटकती है,जो सफ़ेद लिब़ास में रहती हैं और उसका चेहरा भी आज तक किसी ने नहीं देखा,बस लोगों ने जमीन पर उसके उल्टे पैरों के निशान देंखें हैं,रामखिलावन बोला।।
फिर वही भूत प्रेत की बातें,किसने डालीं हैं तुम लोगों के दिमाग़ में,सत्यसुन्दर ने पूछा।।
ना बाबूजी !ये सही घटना है,रामखिलावन बोला।।
मुझे यकीन नहीं,सत्यसुन्दर बोला।।
कोई बात नहीं,जब डाकबँगले के आस पास कमलनयनी आपको घूमते हुए दिख जाएंगी तो आपको यकीन हो जाएगा ,वर्षों बीत गए,उसके प्रेमी को किसी ने मार दिया था,फिर उसने मोतीमहल के पास बनें कुएँ मे कूदकर अपनी जान दे दी,अब उसकी आत्मा अपने प्रेमी के लिए यूँ ही वर्षो से भटक रही हैं,रामखिलावन बोला।।
ये मोती महल कहाँ हैं,सत्यसुन्दर ने पूछा।।
यहीं गाँव से थोड़ी दूर पर,कभी बहुत रौनक थी उस हवेली में,कहते हैं कि कमलनयनी बहुत ही नेकदिल थी गरीबों की मदद किया करती थी,रामखिलावन बोला।।
बाबा! ये तो आपने मुझे अच्छी पहेली में उलझा दिया,सत्यसुन्दर बोला।।
पहेली नहीं है बाबूजी! ये सच्चाई है,रामखिलावन बोला।।
तो देखते हैं भाई! कब मिलेगी मुझे कमलनयनी,बहुत जिज्ञासा बढ़ गई है उसे देखने की,सत्यसुन्दर बोला।।।
दोनों डाक बँगलें पहुँच चुके थे,रामखिलावन ने सत्यसुन्दर का सामान उतारा और डाँकबँगलें के नौकर दीनू को आवाज़ लगाई___
तभी अन्दर से एक जनाना आवाज ने कहा___
जी! वो तो नहीं हैं,अपनी बुआ के यहां एक रात के लिए गए है,बुआ की तबियत खराब थी।।
तुम कौन हो? रामखिलावन ने पूछा।।
जी! उनकी मेहरारु हैं,बसंती नाम हैं हमरा! दीनू की पत्नी ने कहा।।
ब्याह कब हुआ दीनू का,अभी पिछले हफ्ते तक तो कुँवारा था,रामखिलावन बोला।।
जी! अभी दो दिन पहले,बसंती बोली।।
दो दिन पहले! और दीनू भी कमाल है,अपनी दो दिन की ब्याहता मेहरारू को सुनसान जगह पर छोड़कर चला गया,रामखिलावन बोला।।
अच्छा! बाबूजी ! मैं बसंती से कहें देता हूँ,वो आपके खाने का इंतज़ाम कर देंगीं और उससे कमरे की चाबी माँगकर मैं आपका सामान भीतर पहुँचा देता हूँ,रामखिलावन ने सत्यसुन्दर से कहा।।
और तभी रामखिलावन ने बसंती से कहा___
डरो नहीं बसंती बिटिया! मै तुम्हारे बाप के समान हूँ,ये बाबू जी आए हैं,वनविभाग वाले,इनके ठहरने का इंतज़ाम करना हैं,तुम कमरे की चाबी देदो तो मैं इनके ठहरने का बंदोबस्त कर दूँ और भगवान तुम्हारा भला करें अगर बाबूजी को चाय और साथ में कुछ खानें को मिल जाता तो।।
ठीक है बाबा! लेकिन तुम्हें भी यहीं ठहरना होगा कुछ देर,बाबूजी के साथ,मैं अन्जानो से बात नहीं करती,मैं चाबी दिए देती हूँ,तुम उन्हें भीतर ले जाओ,बसंती बोली।।
और बसंती लहंगे और ओढ़नी में बाहर आई ,उसने चेहरे पर बहुत लम्बा सा घूँघट डाल रखा था,उसने चाबी दी और बोली कि मैं अभी चाय नाश्ता लेकर आती हूँ,इतना कहकर वो भीतर चली गई।।
इधर रामखिलावन ने सत्यसुन्दर का सामान कमरे में रखवाया और कहा कि बाबूजी उस तरफ स्नानघर है,आप जाकर हाथ मुँह धो लीजिए।।
सत्यसुन्दर अपने बैग में से आरामदायक कपड़े और तौलिया निकालकर स्नानघर की ओर बढ़ गया,कुछ देर में वो स्नानघर से लौटा तो सामने से बसंती घूँघट डालें, चाय और गरमागरम नमकीन पूरियाँ अचार के साथ लेकर चली आ रही थीं,
चाय रामखिलावन के लिए भी थी,बसंती नाश्ता देकर चली गई,रामखिलावन ने सत्यसुन्दर के साथ बैठकर चाय पी और बोला मैं खाऊँगा कुछ नहीं,बस अब चलूँगा,आप खाकर आराम कीजिए,दरवाज़ा ध्यान से बंद कर लीजिएगा ,यहाँ जंगली जानवरों का बहुत डर है,मैं सुबह फिर से आता हूँ और इतना कहकर रामखिलावन चला गया।।
नाश्ता करके सत्यसुन्दर की जान में जान आईं और उसने दरवाज़ा बंद किया फिर घड़ी देखी जो कि रात के दो बजा रहीं थीं,अभी उसे नींद नहीं आ रही थी,वो बिस्तर पर लेट गया और कोई किताब पढ़ने लगा,
खिड़की खुली हुई थी और हवा से उसके परदे हिल रहें ,सत्यसुन्दर को थोड़ी ठंड महसूस हुई,उसने सोचा खिडकी बंद कर देता हूँ,वो खिड़की बंद करने को उठा तो उसने बाहर देखा कि कोई लड़की सफ़ेद लिब़ास में वहाँ टहल रहीं हैं,उसे देखकर सत्यसुन्दर को थोड़ा आश्चर्य हुआ,
तभी अचानक ना जाने कहाँ से एक काली बिल्ली आकर सत्यसुन्दर पर कूद पड़ी और जोर से उसकी चीख निकल गई।।उसकी चींख सुनकर घूँघट ओढ़ें बसंती बाहर आकर बोली___
क्या हुआ बाबूजी!
कुछ नहीं,वो काली बिल्ली थी,सत्यसुन्दर बोला।।
और इतना सुनकर बसंती जाने लगी तो सत्यसुन्दर ने उसके पैर के पंजे देखें जो कि पीछे की ओर थे ,अब ऐसी ठंड में सत्यसुन्दर पसीने पसीने था।।

सत्यसुन्दर ने अपने माथे का पसीना पोछा,खिड़की बंद की और चुपचाप आकर बिस्तर पर लेट गया,डर के मारे अब नींद तो उड़ ही चुकी थी,उसने फिर अपनी किताब में ध्यान लगाना चाहा,लेकिन उसका ध्यान लग ही नहीं रहा था,उसे कुछ देर बाद फिर पायलों की छुनछुन सुनाई दी,उसे लगा कि कोई लड़की गाना गुनगुना रही है,पहले वो आवाज़ उसे दूर से आती सुनाई दी,अब धीरे धीरे वो आवाज़ उसे अपने कमरे के नजदीक से आती हुई मालूम हुई,लेकिन इस बार उसकी हिम्मत ना हुई कि वो खिड़की खोलकर देख सकें कि कौन है?
धीरे धीरे गाने की अवाज़ सुनाई देनी बंद हो गई और पायलों की छुनछुन की आवाज़ बढ़ गई,अब सत्यसुन्दर को ऐसा लगा कि उसका दिमाग फट जाएगा अगर वो पायलों का शोर बंद ना हुआ,उसने अपने दोनों कान हाथों से बंद कर लिए लेकिन कोई असर ना हुआ,फिर पता नहीं अचानक क्या हुआ,सत्यसुन्दर अपने बिस्तर से उठा और दरवाज़ा खोलकर बाहर चला गया,ऐसा लगा कि जैसे उन पायलों की छुनछुन ने उसे सम्मोहित कर दिया हो।।
सत्यसुन्दर बस उन पायलों की छुनछुन के पीछे बेसुध सा भागा चला जा रहा था,वो आवाज़ उसे मोतीमहल के पास खीचकर ले गई,जो कि सुनसान और वीरान इलाके में था,मोतीमहल के खण्डहर देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे वो कोई कहानी कहना चाह रहा हो लेकिन वक्त के थपेड़ों ने उसे ख़ामोश कर दिया हो,मोतीमहल को देखकर ऐसा लग रहा था कि ना जाने उसके भीतर कितने ही राज़ दफ़्न हैं और आज वो सारे रहस्यों पर से पर्दा उठाना चाहता हो।।
सत्यसुन्दर ने देखा कि एक पेड़ की ओट में कोई लड़की सफ़ेद ल़िबास़ में छुपी है और पायलों की छुनछुन की आवाज़ शायद उसकी ही पायलों से आ रही है,वो भागकर उसके पास गया लेकिन वो वहाँ नहीं थीं,सत्यसुन्दर ने फिर अपनी निगाहें इधर उधर दौड़ाईं कि काश वो फिर से दिख जाए,तभी उसने देखा कि वो लड़की कहीं दूर खड़ी थी।।
सत्यसुन्दर उसके करीब जाने को परेशान हो उठा,जैसे ही वो उसके क़रीब पहुँचा,वो वहाँ से फिर ना जाने कहाँ चली गई,बस घने पेड़ो के बीच हर जगह धुँन्ध धुँन्ध सी दिखाई दे रही थी और कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था,एकाएक सत्यसुन्दर का पैर किसी पत्थर से टकराया और वो जम़ीन पर गिर कर बेहोश हो गया,जब उसे होश़ आया तो वो मोतीमहल के कुएँ के पास था और उसके सिर को किसी लड़की ने अपनी गोद मे ले रखा था,सत्यसुन्दर ने उसका चेहरा देखा और पूछा___
कौन हो तुम?
मैं.....मैं....मुझे नहीं पहचानते आप! इतनी जल्दी भूल गए,उस लड़की ने कहा।।
मैं तुमसे कभी मिला ही नहीं तो भूल कैसे सकता हूँ,सत्यसुन्दर बोला।।
तभी सत्यसुन्दर को किसी के पुकारने की आवाज़ सुनाई दी,शायद वो रामखिलावन था,रामखिलावन की आव़ाज सुनकर वो लड़की बोली___
अच्छा! अभी मैं जाती हूँ और इतना कहते ही वो चली गई!!
रामखिलावन,सत्यसुन्दर को ढू़ढ़ते हुए उसके पास पहुँचा और बोला____
बाबू जी! यहाँ कैसे आ गए आप?
वो तो मुझे भी पता नहीं चला कि मैं यहाँ कैसे आ गया?सत्यसुन्दर बोला।।
कैसे पता नहीं चला आपको?अगर कुछ हो जाता आपको तो,हमारे गाँव की बदनामी हो जाती,रामखिलावन बोला।।बाबा! तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ मिलूँगा? सत्यसुन्दर ने पूछा।।
मुझे सालों हो गया है यहाँ रहते,मुझे सब पता है,अभी आप यहाँ से उठिए और डाक बँगले चलिए,भगवान भला करें कि आपको कुछ हुआ नहीं,वो तो मैने सोचा कि घर जाते समय डाक बँगलें में देखता चलूँ कि आप को कोई तकलीफ़ तो नहीं और फिर बसंती भी अकेले थी,इसलिए चला आया,देखा तो आपका कमरा खुला हुआ है और आप नदारद हैं,बसंती से पूछा तो वो बोली कि हम तो सो रहे थे,हमें कुछ नहीं पता कि बाबूजी कहाँ हैं? रामखिलावन बोला।।
लेकिन बाबा! कमलनयनी नहीं,बसंती ही वो चुड़ैल हैं,मैने देखा था उसके पैर के पंजें पीछे की ओर थे,सत्यसुन्दर बोला।।
लेकिन वो कह रही थी कि जब से वो सोई,तबसे वो जागी ही नहीं,मैने ही उसे जगाया है,रामखिलावन बोला।।
तो फिर वो कौन थी?घाघरे और ओढ़नी में,सत्यसुन्दर बोला।।
बाबू जी! आपके मन का वह़म होगा,वहाँ डाकबँगले के पास नहीं यहाँ मोतीमहल के पास खतरा है,रामखिलावन बोला।।
ठीक है बाबा! अब से कभी भी यहाँ नहीं आऊँगा,सत्यसुन्दर बोला।।
लेकिन सत्यसुन्दर ने पूरी बात रामखिलावन को नहीं बताई कि उसे सफ़ेद लिब़ास में एक लड़की दिखी थी लेकिन तुम्हारी आवाज़ सुनकर भाग गई।।
सत्यसुन्दर और रामखिलावन डाकबँगले वापस आ गए____
अब आप जाकर सो जाइए,मैं सुबह आऊँगा,रामखिलावन बोला।।
ठीक है बाबा! सत्यसुन्दर बोला।
और अब कोई भी आवाज सुनाई दे,आपको बाहर बिल्कुल नहीं निकलना है,वैसे अब खतरा नहीं है,शायद अब सुबह के चार बज रहे होगें,दरवाज़ा ठीक से बंद कर लीजिए,रामखिलावन ने सत्यसुन्दर को हिदायतें देते हुए कहा।।
ठीक है बाबा! जैसा तुम कह रहे हो,वैसा ही करूँगा,सत्यसुन्दर बोला।।
और रामखिलावन डाकबँगले से चला गया,सत्यसुन्दर दरवाज़ा बंद करके फिर से बिस्तर पर लेट गया लेकिन सफ़ेद लिबास़ वाली लडकी अब भी उसकी आँखों के सामने घूम रही थी,कुछ देर उसके बारें में सोचते सोचते सत्यसुन्दर को नींद आ गई।।
सुबह हुई ,करीब दस बजे रामखिलावन ने आकर सत्यसुन्दर के कमरे पर दस्तक दी___
सत्यसुन्दर ने आँखें मलते मलते कमरें का दरवाज़ा खोला और रामखिलावन से बोला___
बाबा! तुम! आ गए।।
हाँ! बाबूजी!आपके लिए चाय लाया हूँ,आप जल्दी से नहाधोकर तैयार हो जाइए,तब तक बसंती आपके लिए खाना तैयार किए देती है,बताइए तो क्या खाएंगे खाने में,रामखिलावन ने पूछा।।
कुछ भी खा लूँगा,मुझे तो सारी सब्जियाँ पसंद हैं,सत्यसुन्दर बोला।।
ठीक है तो आप चाय पीकर तैयार हो जाइए,आपको अपने वनविभाग वाले दफ्तर भी तो जाना होगा,हाजिरी देने,रामखिलावन बोला।।
हाँ,बाबा! मैं तो भूल ही गया,अभी झटपट तैयार होता हूँ,सत्यसुन्दर इतना कहकर तैयार होने चला गया,सत्यसुन्दर जब तक तैयार होकर आया तब तक बसंती खाना तैयार कर चुकी थीं,खानें में तड़के वाली अरहर की दाल,आलू बैंगन की भुजिया,आम का अचार और चूल्हे की सिकीं रोटी थी,रामखिलावन थाली लेकर आ पहुँचा,सत्यसुन्दर ने मन से खाना खाया ,उसे खाना बहुत अच्छा लगा,खाना खाकर वो दफ्दर की ओर निकल गया।।
सत्यसुन्दर शाम को डाकबँगले लौटा,तब तक दीनू भी आ चुका था,
सत्यसुन्दर ने उसे देखा और पूछा___
तुम कौन हो?
जी! बाबू जी! मैं दीनू हूँ,डाकबँगले का नौकर,दीनू बोला।।
अच्छा...अच्छा...हाँ!बाबा ने बताया था तुम्हारे बारें में,सत्यसुन्दर बोला।।
और दीनू ने बसंती से चाय बना लाने को कहा,सत्यसुन्दर जब तक हाथ मुँह धोकर आया दीनू तब तक चाय और बिस्किट ले आया,चाय पीकर सत्यसुन्दर को अच्छा लग रहा था,वो अपने कमरे से एक किताब उठा लाया और बरामदे पर पड़ी कुर्सी पर बैठकर पढ़ने लगा,किताब पढ़ते पढ़ते अँधेरा थोड़ा गहराने लगा था,दीनू ने डाकबँगले के गेट पर लगे लैम्पपोस्ट की बत्ती जला दी और सत्यसुन्दर के कमरें का बल्ब भी जला दिया कमरा बल्ब की पीली रोशनी से भर गया,दीनू ने बरामदे का बल्ब जलाते हुए सत्यसुन्दर से पूछा___
बाबूजी! खाना कब तक खाएँगे,बता दीजिएगा,वैसे खाना आधा तैयार है,जब हुकम करेंगें तो गरमागरम रोटी सिंक जाएंगीं।।
अभी रूक जाओं,थोड़ी देर में खाऊँगा,कुछ रूककर,सत्यसुन्दर ने जवाब दिया।।
कुछ चाहिए तो बता दीजिएगा,मैं यहीं हूँ,दीनू इतना कहकर चला गया।।
सत्यसुन्दर अपने कमरें में गया और बैग में से शराब की बोतल निकाली,तले हुए काजूओं की नमकीन निकालकर,काँच के गिलास में एक पैग बनाया और पीने लगा,तीन चार पैग लेने के बाद उसे लगा कि अब हल्का सुरूर छाने लगा है तो उसने दीनू को आवाज़ दी___
जी,बाबू जी! आपने बुलाया,दीनू ने पूछा।।
हाँ,दीनू!अब खाना लगवाओ,भूख लग रही है,सत्यसुन्दर ने कहा।।
जी,बाबूजी,बस कुछ देर ठहरिए,अभी खाना लेकर आता हूँ और इतना कहकर दीनू खाना लेने चला गया।।
कुछ देर में दीनू खाना लेकर लौटा,सत्यसुन्दर ने खाना खाया,खाना खाने के बाद दीनू खाली बरतन ले जाने लगा,उसने सत्यसुन्दर से कहा___
बाबू जी! अब आप आराम कीजिए,कुछ जरूरत हो तो कह दीजिएगा।।
नहीं! कुछ नहीं चाहिए,तुम जाओ और जाते वक्त दरवाज़ा अटका देना,सत्यसुन्दर बोला।।
लेकिन बाबूजी! अगर आप दरवाज़ा भीतर से बंद कर लेते तो अच्छा रहता क्योंकि मैं दिनभर का थका हुख हूँ,ऐसा ना हो कि खाना खाने के बाद गहरी नींद में सो जाऊँ,दीनू बोला।।
अच्छा! ठीक है तुम जाओ,मै दरवाज़ा बंद कर लूँगा,तुम कमरे की बत्ती भी बंद करते हुए जाना,सत्यसुन्दर बोला।।
दीनू ने कमरे की बत्ती बंद की,दरवाज़ा अटकाया और चला गया,
दीनू के जाते ही सत्यसुन्दर आलस कर गया ,वो दरवाज़ा बंद करने को नहीं उठा और लेटते ही कुछ देर के बाद उसे नींद आ गई।।
रात के क़रीब एक बजे़ कमरे का दरवाज़ा खुला और कमरे में कोई दाख़िल हुआ,कमरें की बत्ती बंद थी और कमरें में अँधेरा था,बस बाहर से थोड़ी रोशनी खिड़की से आ रही थी,वो साया सत्यसुन्दर के सिरहाने बैठकर उसका सिर सहलाने लगा,सत्यसुन्दर को शराब़ का नशा था ,वो हल्की नींद मे था , कोई उसका सिर सहला रहा है ये उसे अच्छा लग रहा था,फिर अचानक ना जाने क्या हुआ वही काली बिल्ली फिर से सत्यसुन्दर के ऊपर झपट्टा मारकर कूद पड़ी।।
बहुत तेज़ चींख के साथ सत्यसुन्दर की आँख खुली,सत्यसुन्दर की चीख सुनकर दीनू कमरें की ओर भागा चला आया ,फौरन कमरे की बत्ती जलाई और सत्यसुन्दर से पूछा___
क्या हुआ ?बाबूजी! आप चींखें क्यों?
सत्यसुन्दर के मारे डर के होश़ उड़े हुए थे,उसने कहा__
किसी ने मुझ पर झपट्टा मारा।।
हाँ,काली बिल्ली होगी,मैनें अभी उसे बाहर जाते हुए देखा है,दीनू बोला।।
नहीं,दीनू! उसके अलावा भी कमरें में और कोई भी था,जो मेरे सिराहने बैठकर मेरा सिर सहला रहा था,सत्यसुन्दर बोला।।
आखिर कौन हो सकता है? मैने आपसे कहा था ना! कि दरवाज़ा याद से बंद कर लीजिएगा,लेकिन शायद आप दरवाज़ा बंद करना भूल गए,दीनू बोला।।
हाँ,लेटते ही आँख लग गई थी,.इसलिए ना बंद कर सका,सत्यसुन्दर बोला।।
यहाँ जंगली जानवरों का बहुत ख़तरा है और ये काली बिल्ली तो अक्सर यहाँ आती रहती है,आप नए हैं ना! शायद इसलिए झपट पड़ी होगी,अन्जान समझकर,मेरे साथ ऐसा कभी नहीं करती,मैं इसलिए आने देता हूँ कि यहाँ चूहे ना रह पाएं,नहीं तो पौधों का और सामान का बहुत नुकसान कर देते हैं,दीनू बोला।।
अच्छा,ठीक है,अब तुम जाओ,मैं दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लेता हूँ,सत्यसुन्दर बोला।।
जी,ठीक है बाबूजी! और इतना कहकर दीनू चला गया।।
सत्यसुन्दर ने दरवाज़ा अन्दर से बंद किया ,बत्ती बंद की और बिस्तर पर आकर लेट गया लेकिन अब नींद भी उचट चुकी थी,वो थोड़ी देर ऐसे ही लेटा रहा और उस साए के बारें में सोचता रहा कि आखिर वो कौन था जो मेरे सिर को सहला रहा था।।
लेकिन तभी सत्यसुन्दर को फिर से वही पायल की छुनछुन सुनाई दी और वो फिर बेसुध सा होने लगा,उसने अपने कान बंद किए लेकिन वो आवाज़ अब भी उसके कानों तक पहुँच रही थी,वो फिर से परेशान हो उठा

क्रमशः___

सरोज वर्मा____......✍️